सफ़र बस यंही तक, चलो कुछ और करते हैं..यंहा सब हंस रहे हैं, हम कुछ और करते हैं...जंहा गमगिनियाँ हों, जंहा ना कोई हँस रहा हो..जंहा तनहाइयाँ हों, जंहा खामोशियाँ हों...जंहा बस आशिकी हो, जंहा बस दोस्ती हो...जंहा बेचैनियाँ हों, जंहा बस.................ये पानी याद करके, ये रिश्तों को समझ केकभी खामोश रहकर, कभी फिर मुस्कुरा के...वो बातें याद करके ये बातें भूल कर के...ये पानी याद करके, ये रिश्तों को समझ के...चलो एक घर बनाये, जंहा कुछ और भी होजंहा जब कोई रोये, उसे मालूम ना हो,जंहा जब कोई आये, तो ग़म को भूल जाये...जंहा खामोशियाँ हो, जंहा थोड़ी ख़ुशी हो....जंहा बस ज़िन्दगी हो....जंहा बस ज़िन्दगी हो..
Saturday, April 10, 2010
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