Dil Churane Mai Aa Gaya

It's me

Sunday, May 2, 2010

प्रार्थना
अपनी दुर्बलता का मुझ को अभिमान रहे, अपनी सीमाओं का नित मुझको ध्यान रहे
हर क्षण यह जान सकूँ क्या मुझको खोना है
कितना सुख पाना है कितना दुःख रोना है
अपने सुख-दुःख की प्रभु इतनी पचाहन रहे
अपनी दुर्बलता का मुझको अभिमान रहे
कुछ इतना बरा न हो, जो मुझसे खरा न हो कंधो पर हो, जो हो, नीचे कुछ परा न हो
अपने सपनो का प्रभु बस इतना ध्यान रहे
अपनी दुर्बलता का मुझको अभिमान रहे, अपनी सीमाओं का नित मुझको ध्यान रहे

2 comments:

  1. बहोत सुंदर प्रार्थना।

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  2. Hello Avdhesh, could you tell me who is the author of this poem?

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