प्रार्थना
अपनी दुर्बलता का मुझ को अभिमान रहे, अपनी सीमाओं का नित मुझको ध्यान रहेहर क्षण यह जान सकूँ क्या मुझको खोना है
कितना सुख पाना है कितना दुःख रोना है
अपने सुख-दुःख की प्रभु इतनी पचाहन रहे
अपनी दुर्बलता का मुझको अभिमान रहे
कुछ इतना बरा न हो, जो मुझसे खरा न हो कंधो पर हो, जो हो, नीचे कुछ परा न हो
अपने सपनो का प्रभु बस इतना ध्यान रहे
अपनी दुर्बलता का मुझको अभिमान रहे, अपनी सीमाओं का नित मुझको ध्यान रहे
बहोत सुंदर प्रार्थना।
ReplyDeleteHello Avdhesh, could you tell me who is the author of this poem?
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